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यस आई एम–1[डोंट टच हर]

★★★

"रूको।" कियाँश ने अपने पूरे ग्रुप को रोकते हुए कहा। वे सभी इस वक्त यूनिवर्सिटी के बाहर कुछ दूरी पर खड़े हुए थे। उसकी आवाज सुनकर सभी एकदम से रूक गए।

"क्या हुआ?" वारिजा ने खीझते हुए पूछा और फिर आगे बोली। "अब आराम से घर भी नही जा सकते?"

"तृष्णा..वो कहां है?" कियाँश ने पूरे समूह पर नजारे डालते हुए पूछा।

"यही होगी।" समूह में से किसी ने जवाब दिया। लेकिन जब कियाँश ने ध्यान से इधर उधर देखा तो पाया कि तृष्णा उन सभी के बीच में मौजूद नही थी।

"वारिजा.!" उसने लगभग चिल्लाते हुए कहा और फिर आगे बोला। "तृष्णा...कहां है वो?"

"मुझे क्या मालूम?" वारिजा ने लगभग हैरानी के साथ जवाब दिया।

"पक्का ना?" कियाँश ने अपनी बात पर जोर देते हुए पूछा। "हां, पक्का। वैसे तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि मै उसके साथ कुछ गलत करूंगी?" वारिजा ने उसे घूरते हुए पूछा।

"क्योंकि आज तुम्हारी उसके साथ लड़ाई हुई थी।" वारिजा के पीछे खड़े हुए लड़के ने जवाब दिया।

"तुम तो रहने ही दो सक्षम।" उसके लहजे में चिढ़ साफ झलक रही थी। "कही दोबारा फिर तो."उसने कुछ सोचते हुए कहा।

"नही.! ये लड़की भी ना।" इतना कहते ही कियाँश और वारिजा दौड़ पड़े। समूह के बाकि के सदस्य भी उनके पीछे पीछे चल दिए।

पूरी क्लास के बाहर जाने के बाद तृष्णा का पूरा समूह रूम से बाहर निकल गया। जैसे ही तृष्णा रूम से बाहर निकली वह चौकन्नी हो कर बड़ी सतर्कता से अपने आस पास देखने लगी।

"क्या हुआ तृष्णा? कही तुम्हें अभी से अपने नाम के नारे तो नही सुनने लगे।" अपनी बात पूरी करते ही वारिजा जोर जोर से हँसने लगी। जिसे देखकर बाकी के स्टुडेंट्स भी हंस पड़े।

"वारिजा! छोटी बच्ची हो क्या?" कियाँश के इतना कहते ही वारिजा चुप हो गई। उसके चुप होते ही बाकि के स्टुडेंट्स भी चुप हो गए।

"कुछ नही हुआ।" तृष्णा ने संक्षिप्त सा जवाब दिया। इतना सुनते ही सब वहां से चल पड़े। लेकिन तृष्णा वही खड़ी होकर बड़े ध्यान से कुछ सुनने लगी। जब उसने पीछे मुड़कर देखा तो उसे गलियारे में कोई भी दिखाई नही दिया।

"मुझे ऐसा क्यों लगा, कोई हम पर नजर रख रहा है।" इतना कहते ही तृष्णा ने अपने कंधे उचका दिए और फिर वहां से चली गई। उसने देखा तो पाया कि उसके दोस्त तब तक काफी दूर जा चुके थे। वह भी उनके पीछे पीछे चल पड़ी।

यूनिवर्सिटी के गेट और कैम्पस को जो सड़क जोड़ती थी। वह काफी सुनसान रहती थी।सड़क के दोनों ओर आम के पेड़ लगे हुए थे। जैसे ही तृष्णा उस सड़क पर बने हुए मोड़ पर पहुंची उसे अपने बाकि के दोस्त दिखाई देने बंद हो गए। वह वहां पर खड़ी हो कर कुछ सोचते हुए बोली। "बाहर आ जाओ।" उसने सपाट भाव से अपनी बात कही और फिर आगे बोली। "मै तुम्हें बहुत देर से नोटिस कर रही हूं।"

"हां! तुम ही। पेड़ के पीछे से निकल कर सामने आओ।" तृष्णा की पीठ इस वक्त जिस पेड़ की ओर थी उसके पीछे एक लड़का छिपा हुआ था। पेड़ के पीछे छिपा हुआ वह लड़का हैरानी से तृष्णा को देखते हुए मन ही मन सोचने लगा। "व्हॉट इस दिस? इसे कैसे पता चला कि मै इसका पीछा कर रहा हूं?" इतना कहते ही वह दबे हुए कदमों से उसकी ओर बढ़ने लगा। जैसे जैसे वह तृष्णा के नजदीक आ रहा था वैसे वैसे ही तृष्णा के चेहरे के भाव बदल रहे थे। तृष्णा पीछे मुड़ने ही वाली थी कि उस से पहले ही उसे किसी की आवाज सुनाई दी।

"डोंट टच हर।" तृष्णा की ओर बढ़ रहे लड़के को देखकर कियाँश ने कहा। कियाँश भागते हुए आ रहा था। नजदीक आते ही उसने अपनी रफ्तार धीमी कर ली। जिसे सुन कर वह लड़का हैरानी से कियांश की ओर देखने लगा। उसने उसकी बात को पूरी तरह से नजरंदाज किया और फिर तृष्णा की ओर बढ़ने लगा।

"ही से डॉन्ट टच हर।" वारिजा ने तृष्णा के पीछे खड़े हुए लड़के को चेतावनी देते हुए कहा और फिर रुक चुके कियांश की बराबर में आकर खड़ी हो गई। लड़के ने वारिजा की बात को पूरी तरह से अनसुना कर दिया।

"ये बिना इलाज के नही मानेगा।" वारिजा ने कहा और फिर उसके चेहरे पर एक तिरछी मुस्कान तैर गई। कियाँश उसकी बात को समझ गया

वह तृष्णा के कंधे पर हाथ रखने ही वाला था कि तभी तृष्णा ने बड़ी ही फुर्ती के साथ पीछे मुड़ते हुए उसके हाथ को पकड़ कर मरोड़ कर उसे घूमा दिया। उस लड़के की पीठ अब तृष्णा की ओर थी और चेहरा उसके दोस्तों की। उसका चेहरा देख वारिजा हैरानी के साथ बोली। "ये तो मैडिकल का स्टुडेंट है।"

"छोड़ दो मुझे।" उसने दर्द से बिलखते हुए कहा।

"ऐसे कैसे?" कियाँश ने उस लड़के के पास आते हुए कहा। बाकि के मैंबर्स भी वहां पहुंच चुके थे। वह अपने सामने खड़े हुए लड़के को बेचारगी के भाव से देखते हुए बोला "मैने तुम्हें पहले ही वॉर्न किया था। डोंट टच हर। पर तुमने मेरी बात नही मानी तो अब नतीजा भुगतों।"

"सही कहा तुमने। वो तो शुक्र मनाओ कि तृष्णा ने बस तुम्हारा हाथ मरोड़ा है हड्डियां नही तोड़ी।" वारीजा ने कियाँश की बात को आगे बढ़ाते हुए कहा।

"हम दोनों के अलावा तृष्णा को कोई हाथ भी नहीं लगा सकता। कोई भी मतलब कोई भी।" कियाँश ने बड़े ही रहसयमई तरीके से अपनी बात कही। इतना सुनते ही सामने खड़े हुए लड़के के माथे पर डर की वजह से पसीने की बूंदें साफ साफ दिखाई देने लगी।

"आह...." उसके मुंह से जोरदार चीख निकली। तृष्णा ने अपने दाएं पैर की ऐड़ी को बड़े जोर से उसके घुटने पर दे मारा था। वार इतना तेज था कि पहले ही वार में वह घुटनों के बल गिर गया। उसके नीचे बैठते ही तृष्णा ने उसका हाथ छोड़ दिया। कियाँश उस लड़के के पास आ चुका था

"बताओं इसका पीछे क्यों कर रहे हो?" कियाँश ने उसके बालों को पकड़ते हुए पूछा।

"जब से तुम्हारा ये ग्रुप आया है और खास कर ये तृष्णा।" उसके चेहरे पर चिढ़ साफ झलक रही थी। उसने दर्द ने बिलखते हुए कहा।

"तब से क्या?" सक्षम ने उसकी बात को बीच में काटते हुए पूछा।

"तभी से हम मैडिकल वालों का यूनिवर्सिटी में डर खत्म हो गया।" उसकी इतनी बात सुनते ही कियाँश ने उसके बालों को पकड़कर थोड़ा और खींच दिया। उसके मुंह से दर्द से भरी हुई आह निकली।

"पर हमने क्या किया?" वारिजा ने उसे घूरते हुए पूछा।

"तुम लोगों ने हम डॉक्स का खौफ खत्म कर दिया।" उसने खुद को छुड़ाने की असफल कोशिश करते हुए जवाब दिया।

"ये किस खेत की मूली है? पहली बार नाम सुना है।" तृष्णा ने हैरानी से कियाँश की ओर देखा और फिर आगे बोली। "मैने तो ये नाम ही आज सुना है।" कहते हुए वह लड़के को चेहरे को देखने लगी।

"क्योंकि तुम इस दुनियां में थोड़े ही रहती हो।" इतना कहते ही वारिजा हँसने लगी।

"यूनिवर्सिटी में अलग अलग स्ट्रीम के अलग अलग ग्रुप बने हुए है। जिनकी आपस में कुछ खास नहीं बनती। बाकि ग्रुप का यूनिवर्सिटी में रहना और ना रहना एक ही जैसा है सिवाए मैडिकल और इंजीनियरिंग के ग्रुप्स को छोड़कर। जिन्होंने अपने नाम भी रखे हुए है। मैडिकल वालों का ‘डॉक्स’ और इंजीनियरिंग वालों का ‘टेक्नो’।"

"और ये हमेशा से ही एक दूसरे के कट्टर विरोधी रहे है। दोनों ही ग्रुप को यूनिवर्सिटी में अपना कब्जा चाहिए।" वारिजा ने कियाँश की बात को आगे बढ़ाते हुए बताया।

फिर कियाँश अपनी बात को पूरा करते हुए बोला। "पिछले कुछ साल से यूनिवर्सिटी में मैडिकल वालों की ज्यादा चल रही थी। जो अब नही चलती। जिसका जिम्मेदार ये हम सभी को और खास कर तुम्हें मानते है।" इतना बताते ही कियाँश हँसने लगा।

"पर मैने तो कुछ भी नही किया।" तृष्णा ने बड़ी ही मासुमियत के साथ अपनी बात कही।

"बिना किए ही बहुत कुछ कर दिया बेबी।" वारिजा ने आँख मारते हुए कहा।

"यूनिवर्सिटी में रहकर तुम इस गुटबाजी की लड़ाई से नही बच सकती। तुम चाहे कुछ करो या ना करो।" कियाँश ने तृष्णा को समझाते हुए कहा।

"समझ गई। अब तो मैदान में उतरना ही पड़ेगा।" तृष्णा ने उस लड़के को घूरते हुए कहा और फिर आगे बोली। "इसका क्या करना है?"

"छोड़ देते है। उम्मीद है ये आगे से ऐसा कुछ भी नही करेगा और करने से पहले सौ बार सोचेगा।" कियाँश ने उसे छोड़ते हुए कहा। उस लड़के को उसकी जगह पर छोड़कर वे सभी वहाँ से चले गए। वह धरती पर पड़ा हुआ उन्हें तब तक देखता रहा जब तक वें उसकी आंखों से औझल ना हो गए।

ग्रीन सिटी पुलिस स्टेशन

तेईस साल का एक हष्ट पुष्ट शरीर का मालिक, पुलीस इंस्पेक्टर की कुर्सी पर बैठा हुआ था। वह सामने पड़ी फाइल्स के पन्ने पलटते हुए गुस्से से दनदनाते हुए बोला। "व्हॉट द हेल!"

इतना सुनते ही थोड़ी दूरी पर खड़ा हुआ एक हवलदार उसके पास आकर बोला। "क्या हुआ सर?" हवलदार जो दिखने में तीस पैंतीस साल का लग रहा है।

"तेज बहादुर।" इंस्पेक्टर ने सामने खड़े हवलदार के बैच से नाम पढ़ते हुए कहा।

"जी सर!" इतना कहते ही वह सावधान की मुद्रा में खड़ा हो गया और फिर इंस्पेक्टर की नेमप्लेट पर लिखा हुआ नाम पढ़ने लगा।

"अभय, इंस्पेक्टर अभय।" नेम प्लेट पर यह नाम लिखा हुआ था।

अभय हँसते हुए बोला। "लगता है तुम्हें आर्मी में जाना था। पर गलती से यहां पर आ गए।"

"जी साहब!" उसने इंस्पेक्टर के हाव भाव को देखते हुए जवाब दिया। सामने बैठे हुए इंस्पेक्टर की इस शहर में नई नई पोस्टिंग हुई थी और वह उसके मिजाज के बारे में कुछ भी नही जानता था।

"इतने सारे केस पैंडिंग में क्यों है?" अभय ने फाइल पटकते हुए पूछा।

"वो सर किसी ने इन पर काम ही नही किया।" तेज बहादुर ने जवाब दिया।

"आज के बाद कोई भी और खास कर जरूरी केस पैंडिंग नही रहना चाहिए।" अभय ने ऊंची आवाज में वार्निंग देते हुए कहा ताकि वहां पर मौजुद हर एक के कानों तक उसकी आवाज पहुंच सके।

"भगवान का शुक्र है। इस बार तो कोई अच्छा इंस्पेक्टर यहां पर आया।" तेज बहादुर ने मन ही मन सोचने हुए कहा।

तृष्णा और उसके बाकि सभी दोस्त एक कॉलोनी के बाहर पहुंच चुके थे। कॉलोनी के मैन गेट पर ‘परीक्षित’ लिखा हुआ था जो कॉलोनी का नाम था। इस कॉलोनी के  मालिक ने कॉलोनी का नाम अपने पिता के नाम पर रखा हुआ था।

कॉलोनी के बीचों बीच एक सड़क बनी हुई थी जिसके दोनों ओर घर बने हुए थे। प्रत्येक घर की बराबर में से होती हुए एक छोटी सड़क जा रही थी। बारी बारी से सभी अपने अपने घर चले गए। तृष्णा का घर सभी घरों में सबसे पहला था। घर के ऊपर बड़ा सा बोर्ड टंगा हुआ था, जिस पर ‘तृष्णा लाइब्रेरी’ लिखा हुआ था।

वह सीधा अंदर चली गई और सीढ़ियों से होती हुई ऊपर की मंजिल पर बने हुए अपने कमरें में। कॉलेज बैग बेड पर रख कर वह फ्रेश होने बाथरूम में चली गई। बाथरूम से आने के बाद वह अपना लैपटॉप लेकर बैठ गई और उसमें कुछ सर्च करने लगी।

"स्टोरी वर्ल्ड। मिल गया राइटिंग ऐप।" उसने खुश होते हुए कहा। अकाउंट बनाने के बाद वह उस ऐप को स्क्रॉल करने लगी। तभी उसकी नजर एक नाम पर पड़ी। ‘इच्छा’ ये वही नाम था जो उसने यूनिवर्सिटी में अपने दोस्तों के पास मौजुद किताब पर देखा था।

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जारी रहेगी...मुझे मालूम है आप सभी समीक्षा कर सकते है बस एक बार कोशिश तो कीजिए 🤗❤️ साथ ही साथ लाइक जरूर करे।

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16 Comments

hema mohril

25-Sep-2023 03:19 PM

Nice

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Shalu

07-Jan-2022 01:59 PM

Very nice

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Archita vndna

19-Dec-2021 10:19 AM

Very well written..👌

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